लघुकथा

चाय पीते हुए बड़ी तल्लीनता से उसके चेहरे को निहारते हुए, मैंने पूछा था उसे, “कितनी रातों से सोए नहीं हो?”
हँसमुख सा चेहरा, झूठ ना बोल पाने वाली आँखें, चाय के कुल्हड़ में नज़रें धँसाए, काम का बहाना कर चुप हो गईं।
मुझे याद है, मैंने हाथ नहीं थामा था उसका, कुछ अपनी ज़िम्मेदारियों, और फर्ज़ के तले, एक दायरे में मैंने सीमित कर दिया था वो  रिश्ता।
वो रिश्ता जो गर आगे बढ़ता तो उसका सिर, मेरे कांधे पर टिक कर, उसके आँखों के नीचे की काई धुल लेता ।-@diary._.snaps

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